Saturday, May 30, 2020

खूब मजे लो जीवन के

खूब मजे लो जीवन के,
ये धर्म अधर्म बेमानी है
खाओ उड़ाओ, ऐश मनाओ
 कमाई कहां लेके जानी है

संभोग वासना क्रोध राग
मेहनत तो फीका पानी है
चाहे अच्छा हो या बुरा कहो
अपनी अपनी मनमानी है

ये संस्कार की गाथाएं, सब बुढ़ापे की निशानी है
देशप्रेम और देश भक्ति, किसने की किसने जानी है
सोना खाना और अहंकार
ये ही तो असल जवानी है

खूब मजे लो जीवन के
जीवन तो बहता पानी है
चुल्लू भर पानी में मरने की
वो लोकोत्ती पुरानी है

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