!!आईएएस का जिन्न !!
ऐ नादान परिंदे झूने आसमान को निकला था
सूरज को लड्डू समझ खाने को मन फिसला था
अभिलाषा का उन्माद मन में जोश उबलता था
विश्वास और जूनून की गर्मी से रग में ज्वार गरलता था
आज बहुत चलने पर भी जब आसमान ओझल होता
थका हुआ मन थका हुआ तन अपनी किस्मत पर है रोता
मित्रमंडली से मिलता हूँ हर कोई पूछ रहा होता
क्या पाया इस अंधड़ में इससे अच्छा था तू सोता
लोग मुझे समझाते हैं जीवन का विश्लेषण करकर
क्या खोया क्या पाया मैंने इस अंधंड का हिस्सा बनकर
जीवन के उल्लास चरम को तपति ज्वाला में भुनकर
पैसे और भोग से हटकर तपक्रिया को चुनकर
पैसा खोया चैन गंवाया फिर भी हाथ नहीं आया
ऐसा लगता है मानो सब कुछ खोया कुछ नहीं पाया
नहीं नहीं मेरे प्रियमित्रों ऐसी गलती मत करना
रंगीनमिजाजी शौक सिद्धि से नहीं जूनून की तुलना
आकुल अंतर है शांत हुआ मन और अधिक गौरांग हुआ
करुणप्रेम संज्ञान हुआ ऊर्जाशक्ति का आवाह्न हुआ
मन थका नहीं तन रुका नहीं जीवन-दर्शन अधिक महान हुआ
आत्मशक्ति और संतुष्टि से परिपूर्ण परिंदा बलराम हुआ
कर्मशक्ति और भाग्यशक्ति सदैव मेल नहीं खाती
पर अटल सत्य है कर्मशक्ति कभी बेकार नहीं जाती
जीवन क्षणभंगुर किस पल जाने साँसे छोड़ चली जाती
अन्तसमय में आत्मसंतुष्टि और आत्मसिद्धि है काम आती
प्रत्येक सांस से मन में प्रफुलता का संचार हुआ
हरेक फड़फड़ाहट से परिंदा और अधिक आज़ाद हुआ
पैसे से लोगों के जीवन में खुशियां का आगाज़ हुआ
पर क्या पैसे से जीवन में संतुष्टि का साज हुआ?
जब तक जियो एक शौर्यवीर की भाँती चाल प्रचंड रखो
हर व्यक्ति प्राण ज्योति को लेकर मन भावों को निश्झल रखो
कोई बुरा कहे या अच्छा मन में भाव सरल रखो
शांत चित्त संतुष्ट ख़ुशी को जीवन चेतन में लख़खो
अगर नहीं नादान परिंदा उड़ता सूरज को खाने
आकुल अंतर अपराधबोध से रह जाता बस मर जाने
पंख जले पर मरा नहीं है उसका अंतर्मन जाने
आसमान से धरती देखी इसका सौभाग्य अतुल माने ||
ऐ नादान परिंदे झूने आसमान को निकला था
सूरज को लड्डू समझ खाने को मन फिसला था
अभिलाषा का उन्माद मन में जोश उबलता था
विश्वास और जूनून की गर्मी से रग में ज्वार गरलता था
आज बहुत चलने पर भी जब आसमान ओझल होता
थका हुआ मन थका हुआ तन अपनी किस्मत पर है रोता
मित्रमंडली से मिलता हूँ हर कोई पूछ रहा होता
क्या पाया इस अंधड़ में इससे अच्छा था तू सोता
लोग मुझे समझाते हैं जीवन का विश्लेषण करकर
क्या खोया क्या पाया मैंने इस अंधंड का हिस्सा बनकर
जीवन के उल्लास चरम को तपति ज्वाला में भुनकर
पैसे और भोग से हटकर तपक्रिया को चुनकर
पैसा खोया चैन गंवाया फिर भी हाथ नहीं आया
ऐसा लगता है मानो सब कुछ खोया कुछ नहीं पाया
नहीं नहीं मेरे प्रियमित्रों ऐसी गलती मत करना
रंगीनमिजाजी शौक सिद्धि से नहीं जूनून की तुलना
आकुल अंतर है शांत हुआ मन और अधिक गौरांग हुआ
करुणप्रेम संज्ञान हुआ ऊर्जाशक्ति का आवाह्न हुआ
मन थका नहीं तन रुका नहीं जीवन-दर्शन अधिक महान हुआ
आत्मशक्ति और संतुष्टि से परिपूर्ण परिंदा बलराम हुआ
कर्मशक्ति और भाग्यशक्ति सदैव मेल नहीं खाती
पर अटल सत्य है कर्मशक्ति कभी बेकार नहीं जाती
जीवन क्षणभंगुर किस पल जाने साँसे छोड़ चली जाती
अन्तसमय में आत्मसंतुष्टि और आत्मसिद्धि है काम आती
प्रत्येक सांस से मन में प्रफुलता का संचार हुआ
हरेक फड़फड़ाहट से परिंदा और अधिक आज़ाद हुआ
पैसे से लोगों के जीवन में खुशियां का आगाज़ हुआ
पर क्या पैसे से जीवन में संतुष्टि का साज हुआ?
जब तक जियो एक शौर्यवीर की भाँती चाल प्रचंड रखो
हर व्यक्ति प्राण ज्योति को लेकर मन भावों को निश्झल रखो
कोई बुरा कहे या अच्छा मन में भाव सरल रखो
शांत चित्त संतुष्ट ख़ुशी को जीवन चेतन में लख़खो
अगर नहीं नादान परिंदा उड़ता सूरज को खाने
आकुल अंतर अपराधबोध से रह जाता बस मर जाने
पंख जले पर मरा नहीं है उसका अंतर्मन जाने
आसमान से धरती देखी इसका सौभाग्य अतुल माने ||